ऑस्कर अवार्ड तक पहुंची बस्ती के अमृत प्रसाद व सैय्यूब की दोस्ती पर बनी फ़िल्म

Oct 5, 2025 - 23:56
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ऑस्कर अवार्ड तक पहुंची बस्ती के अमृत प्रसाद व सैय्यूब की दोस्ती पर बनी फ़िल्म

ब्यूरो रिपोर्ट INewsUP

बस्ती । कोरोना संक्रमणकाल में जब हर तरफ तहाहाकार मचा हुआ था कोई किसी के करीब नहीं जाना चाहता तब यूपी के झांसी में हाइवे किनारे बैठा मोहम्मद सैय्यूब नाम का एक युवक अपने बाहों में बीमार दोस्त अमृत प्रसाद का सिर रखकर उसकी सांसे गिन रहा था । हर कोई दो गज दूरी मास्क है जरूरी का सदायें बुलंद कर लोगों को जागरूक कर रहा था लेकिन मोहम्मद सैय्यूब अपने बीमार दोस्त का साथ नहीं छोड़ा और एम्बुलेंस की मदद से उसे झांसी के अस्पताल में ले गया । अफसोस, ताबियत में सुधार नहीं हो सका और उसकी मौत हो गई जबकि ऐहतियात के तौर पर सैय्यूब को आइसोलेशन वार्ड में भर्ती करा दिया गया । तीसरे दिन एम्बुलेंस की मदद से मृतक का शव लेकर सैय्यूब गाँव पहुंचा जहां मृतक के परिजनों की मौजूदगी में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया । लालगंज थानाक्षेत्र के देवरी गांव निवासी अमृत प्रसाद व इसी गांव के सैय्यूब दोनों छात्र जीवन से अच्छे दोस्त थे । पढ़ाई छोड़ने के बाद दोनों काम की तलाश में शहर चले गए और गुजरात प्रांत के सूरत में एक टेक्सटाइल कम्पनी में काम करने लगे । वर्ष 2020 में कोरोना ने कहर बरपाया तो सभी पैदल गंतव्य को कूच कर गए । ट्रक में बैठे अमृत प्रसाद व मोहम्मद सैय्यूब मध्यप्रदेश के शिवपुरी से झांसी हाइवे पर पहुंचे थे तभी अचानक अमृत प्रसाद की तबियत बिगड़ गई और उसे तेज बुखार व खांसी शुरू हो गया । ट्रक में बैठे प्रवासी मजदूरों ने कोरोना के डर से अमृत प्रसाद को नीचे उतार दिया तो सैय्यूब भी दोस्त के साथ ही ट्रक से नीचे उतर गया और हाइवे किनारे दोस्त का सिर अपनी बाहों में लेकर बेबसी के आंसू बहाने लगा । कुछ ही देर में एम्बुलेंस की मदद से झांसी के अस्पताल में पहुंचा जहां अमृत प्रसाद ने दम तोड़ दिया । ________________________________________________ कोरोना संक्रमण काल में लालगंज थानाक्षेत्र के देवरी गाँव निवासी अमृत प्रसाद की मध्यप्रदेश के शिवपुरी-झांसी हाइवे पर अचानक तबियत बिगड़ने से मौत हो गई थी । बचपन के मित्र मोहम्मद सैय्यूब एम्बुलेंस के जरिये उसका शव लेकर गांव पहुंचे और उसका अंतिम संस्कार किया गया । कमाऊ पूत की मौत के बाद जिम्मेदारियों का बोझ वृद्ध पिता राम चरन के कंधो पर आ गया ।आमदनी का कोई जरिया नहीं था जिससे परिवार का खर्च चल सके । 3 हजार की लागत से घर में ही एक दुकान खोलकर टॉफी,नमकीन,पान मसाला आदि बेचना शुरू किया जिससे तीन छोटे छोटे बच्चों की पढ़ाई हो सके और घर का खर्चा चल सके ।

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